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इंटरव्यू -Contest

लघु कथाएं और कविताएं
लघु कथाएं और कविताएं
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इंटरव्यू


“मौसी यू आर सो स्वीट…| बाय….  |” कह कर  चहकती सी प्रमिला इंटरव्यू के लिए  गयी थी  |  पर  जब वह  लौट कर आई तब उसके मुख पर क्रोध और निराशा का भाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था | वह थकी सी निढाल हो सोफे पर पसर गयी | मेरे कई बार पूछने पर उसने झुंझलाते हुए बताया,  “ मुझे  इंटरव्यू में रिजेक्ट कर दिया है |”

मैंने आश्चर्य से पूछा , “तुम तो आई .आई. टी . कानपुर से फर्स्ट पोज़ीशन होल्डर हो फिर रिजेक्ट करने की क्या वजह है |”

वह गुस्से से चीख पड़ी , “मेरा लड़की होना | ऑफिसर्स ने बहुत से प्रश्न किये | मैंने सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए |

पूरा पैनल मेरे जवाब सुन कर बहुत इम्प्रेस था | पर इम्प्रेस होने से क्या फायदा | जब उन्हें किसी लड़की को रखना ही नहीं था , तो मुझे कॉल लैटर ही क्यों भेजा था ?”

मेने पूछा, “आखिर उनको परेशानी क्या थी | क्या पूछा तुमसे ?”

वह बोली , पहले तो उन्होंने कहा, “प्लांट में बहुत गर्मी होती है | वहां बहुत हार्ड वर्क करना पड़ेगा | तुम नहीं कर पाओगी|”

मैंने कहा , “नहीं सर मैं कर लूंगी |”

इस पर उन्होंने कहा , “प्लांट में तो नाइट शिफ्ट में भी आना पड़ेगा | वर्कर्स को भी हेंडल करना पड़ेगा | यह सब तुम नहीं कर पाओगी | एक लड़की के लिए यह सब कर पाना बहुत मुश्किल है   |”

मैंने  बार बार कहा,   “सर, ये सब काम मैं आसानी से कर सकती हूँ | मेरे कहने पर भी वे अपनी बात पर डटे रहे |”

“तो क्या तुम सुन कर चली आयीं ?” मैंने उससे पूछा |

प्रमिला कहने लगी , “नहीं मौसी , जॉब तो मुझे कहीं और भी मिल जायेगा | पर समाज को भी तो बदलना है | इसलिए मैंने पूरे पैनल से कहा कि आज के युग में भी आपकी विचारधारा पुराने ज़माने की  ही है | बचपन में मैंने एक कूएँ के मेंढक  की कहानी पढ़ी थी |आप सब आज भी कूप मंडूक बन कर ही  जी रहे हैं | आज लड़कियाँ प्लेन  उड़ा रही हैं | बार्डर पर देश की रक्षा कर रही हैं  और आप लड़कियों को इतना छोटा आंक रहें हैं |”

मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा ,”बिल्कुल ठीक किया प्रमिला तुमने  |”

थोड़ी ही देर में उसके पास कम्पनी से कॉल आया , “मैडम यू आर सलेक्टेड | वी आर सेंडिंग योर अपोइन्टमेंट लैटर |”

अपनी बात रखने का फ़ायदा प्रमिला को  मिल गया था | मैं समझ गयी थी कि समाज में स्थान पाने के लिए हम नारियों को ही आगे बढ़ना पड़ेगा अन्यथा तो ज़माना शोषण करता ही रहेगा |

सुनीता माहेश्वरी


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