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आख़िर कब तक?- Contest

लघु कथाएं और कविताएं
लघु कथाएं और कविताएं
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आख़िर कब तक ?

स्टाफरूम में बैठे सभी शिक्षक मुझे बधाई दे रहे थे | मिस सुषमा कहने लगीं , “ मैडम , आपसे पार्टी लेंगे | हमारा पूरा अनुमान है कि आप ही विद्यर्थियों की  टूर इंचार्ज बन कर सिंगापुर जायेंगी |”

डॉ.प्रतिभा बोली , “आप  तो सीनियर भी हैं”

मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न थी | मैं सिंगापुर जाने के लिए बहुत उत्साहित थी | सच पूछिए तो मैंने जाने की तैयारियां भी शुरू कर दी थीं | तभी स्कूल का चपरासी आया और बोला , “मैडम आपको प्रिंसिपल सर ऑफिस में बुला रहे हैं |”

मेरा मन खुशी से बल्लियों उछलने लगा था | मैंने कल्पना कर ली थी कि सर मुझे कहेंगे , “मैडम , बच्चों को सिंगापुर ले जाने की जिम्मेदारी आपको सौंपी जाती है |”

मैं मुस्कराते हुए ऑफिस में पहुँची तो प्रिंसिपल सर ने कहा, “मैडम, वैसे तो आप सीनियर और जिम्मेदार हैं | मैं यही चाहता था कि आप ही बच्चों को लेकर सिंगापुर जाएँ परन्तु मेनेजमेंट की राय अलग है | उनका मानना है कि एक अकेली महिला  के साथ इतने बच्चों को भेजना सुरक्षित  नहीं है | अकेली कैसे विदेश में बच्चों को संभालेगी ? फ्लाइट से कैसे ले जायेगी बच्चों को? इतनी बड़ी जिम्मेदारी एक महिला को नहीं सौंपी  जा सकती | किसी के बच्चे को कुछ हो गया तो लेने  के देने पड़ जायेंगे  |  टूर का इंचार्ज  कोई पुरुष ही होना चाहिए |  मेनेजमेंट का निर्णय है कि गेम्स टीचर शर्मा जी को इस टूर का इंचार्ज बनाया जाये |”

मेरे क्रोध का ठिकाना नहीं था | मुझे यह अपमान सारी नारी जाति का अपमान लग रहा था | मैंने सर से कहा, “सर, आप तो मेरी काबिलियत को जानते हैं | एक महिला होने से क्या मेरी योग्यता समाप्त हो जाती है | गेम्स टीचर तो ठीक से इंग्लिश भी नहीं बोल पाते |प्लीज सर आप एक बार फिर से मेनेजमेंट से बात करिए |”

प्रिंसिपल सर ने मेरी बात समझ कर मेनेजमेंट के सम्मुख यह मुद्दा पुनः उठाया और गेम्स टीचर की अंग्रेजी बोलने की मुश्किल बताते हुए मेरी योग्यताओं से उन्हें  परिचित कराया और कहा,  “आज लड़कियाँ कहीं पीछे नहीं हैं | वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं | उनके विकास को अवरुद्ध करना या फिर छोटे छोटे कार्यों के लिए भी उन्हें अयोग्य समझाना उचित नहीं है , मैडम को एक मौका तो दिया ही जा सकता है |”

काफी बातचीत के बाद मेनेजमेंट के सदस्यों ने मेरे पक्ष में निर्णय लिया | मुझे लगा कि हम महिलाओं को अपने को  पुरुषों  के समान सिद्ध करने के लिए समाज में आख़िर कब तक लड़ना पड़ेगा  ?


सुनीता माहेश्वरी

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